पेशेवर नैतिकता / व्यावसायिक नैतिकता: अर्थ, प्रकृति, महत्त्व

वकालत केवल एक पेशा नहीं, बल्कि न्याय और नैतिकता का प्रतीक भी है। एक वकील का आचरण न केवल उसके मुवक्किलों पर बल्कि संपूर्ण न्यायिक प्रणाली पर प्रभाव डालता है। इसीलिए, व्यावसायिक नैतिकता (Professional Ethics) विधि व्यवसाय में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह नैतिकता एक वकील के कार्य, आचरण और दायित्वों को निर्धारित करती है, ताकि वह सत्यनिष्ठा और निष्पक्षता के साथ न्याय की रक्षा कर सके। इसे पेशेवर नैतिकता, पेशेवर नैतिकता , व्यवसायिक नैतिकता भी कहते है। इस लेख में हम व्यावसायिक नीति के अर्थ, इसकी प्रकृति और महत्व पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

व्यावसायिक नैतिकता से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में इसकी प्रकृति और महत्व बताइये।

पेशेवर नीति / नैतिकतासे आप क्या समझते हो

व्यावसायिक नैतिकता का अर्थ (Meaning of Professional Ethics)-

न्याय-प्रशासन में एक वकील का सम्बन्ध न्यायिक अधिकारियों, वादकारियों तथा अपने साथी वकीलों (Colleagues) से होता है। ऐसी अवस्था में वकीलों को अपने कार्य, आचरण और व्यवहार में सत्यनिष्ठा का परिचय देते हुए पेशेवर नैतिकता /व्यावसायिक नैतिकता का पालन करना पड़ता है। ‘यद्यपि व्यावसायिक नैतिकता की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं है, फिर भी सामान्य अर्थों में इसका एक निश्चित अर्थ है।

पेशेवर नैतिकता की परिभाषा

जस्टिस एस० सी० अग्रवाल के अनुसार, न्याय प्रशासन एक प्रवाह है। इसे स्वच्छ और प्रदूषणमुक्त रखा जाना आवश्यक है। इसका सम्बन्ध केवल न्यायिक अधिकारियों से ही नहीं है, बल्कि वकीलों से भी है। वकीलों को न्यायालय के अधिकारी माना जाता है। उन्हीं में से न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है। अतः उनसे ऐसे आचरण की आशा की जाती है जिससे कि भविष्य में उनकी सत्यनिष्ठा पर कोई अंगुली न उठा सके। उनका कर्त्तव्य है कि मामलों की सुनवाई में वे केवल पक्षकारों के प्रति ही नहीं, बल्कि न्यायालय और विपक्ष के प्रति भी सत्यनिष्ठा और ईमानदारी का परिचय दें।

2. न्यायमूर्ति नागेश्वर प्रसाद के अनुसार, ‘विधि व्यवसाय के सन्दर्भ में व्यावसायिक नैतिकता वह लिखित या अलिखित संहिता है, जो विधि व्यवसायी के, अपने प्रति, अपने पक्षकार के प्रति, अपने विरोधी पक्ष तथा न्यायालय के प्रति व्यवहार को संचालित करती है।”

व्यावसायिक नैतिकता का पालन करना प्रत्येक वकील के लिए आवश्यक होता है क्योंकि इस नीति में दिये गये नियमों और प्रथाओं के प्रयोग से विधि व्यवसाय की सफलता सुनिश्चित होती है तथा न्याय प्रशासन के क्षेत्र में भी मधुरता, विश्वास और प्रेम का वातावरण बना रहता है।

इस प्रकार व्यावसायिक नैतिकता वकीलों की एक ऐसी आचरण संहिता है जिसके अधीन प्रत्येक वकील कार्य करते हुए अपने कर्त्तव्यों और दायित्वों का पालन करता है और अपनी प्रतिष्ठा को उच्च बनाए रखते हुए धन कमाता है। विधि व्यवसाय के सफलतापूर्वक संचालन के लिए सुस्थापित नियमों, नैतिक दायित्वो तथा उचित कर्त्तव्यों का संकलन ही व्यावसायिक नीति का आधार है।

पेशेवर नैतिकता / व्यावसायिक नैतिकता की प्रकृति (Nature of Professional Ethics)-

इसमें संदेह नहीं है कि आज संसार में जितने भी व्यवसाय है। उनमें सर्वाधिक स्वतंत्र विधि व्यवसाय हैं इस व्यवसाय की यह स्वतन्त्रता वह आधारशिला है, जिस पर चरण रखते हुए एक सभ्य राष्ट्र अग्रसर होता है। फलस्वरूप प्रत्येक वकील से यह भी आशा की जाती है कि उनमें इस प्रकार की क्षमता होनी चाहिए कि वह अन्याय और निरंकुशता से लोहा ले सके। ऐसा कहा जाता है कि वकील सर्वप्रथम तनाव तथा झगड़ा उत्पन्न करता है और फिर उसको दूर करने की व्यवस्था करता है परन्तु यह कथन पूर्णरूप से सत्य नहीं है।

कहा जाता है कि “एक वकील धन कमाने में वेश्या (व्यापारी) की तरह चतुर और बन्दर की तरह चालाक होता है।” इस पेशे के सम्बन्ध में व्यक्तियों की ऐसी धारणाएँ भी व्यक्त हुई हैं कि ये पेशा ठगी और लम्पटता का है, परन्तु यदि ध्यान से देखा जाये, तो यह तथ्य सामने आता है कि उपरोक्त प्रकार की धारणाएँ उन्हीं व्यक्तियों द्वारा व्यक्त की गई हैं, जो समाज में विधि के तथा वकीलों के योगदान से परिचित नहीं हैं।

वास्तव में एक वकील समर्थ को संरक्षण प्रदान करता है तथा निर्बल को आतंक से बचाता है, निःसन्देह एक वकील धन कमाने के लिए पेशा करता है। अतः पेशे से धन कमाता है और धन से परेशानियाँ। महात्मा गाँधी ने भी कहा था कि वकालत का पेशा झूठों का धन्धा है, परन्तु उन्होंने भी सदैव उचित कानून के प्रति अटूट विश्वास व्यक्त किया है।

एक वकील के सामने वे तथ्य पेश किये जाते हैं जो कटु होते हैं, जो सामान्य व्यक्ति को भी घबरा देते हैं परन्तु एक वकील अपने मुवक्किल से फीस लेकर उसकी समस्याओं को खरीद लेता है और उन समस्याओं को न्यायालय के सामने विरोधी पक्ष के सामने पेश करता है तथा उनके औचित्य के लिए प्रत्येक क्षण संघर्ष करता है। इस संघर्षपूर्ण परिस्थितिं में उसे उस व्यावसायिक नैतिकता का अनुसरण करना पड़ता है जो सामान्य विधि के लिए सम्भव नहीं है।

प्रथम विश्व युद्ध के समय बाकर महोदय को अमेरिका के वकील मण्डल का अध्यक्ष चुना गया था। उनका कहना था कि न्यायाधीश ऐसा व्यक्ति होता है, जो ज्ञान प्राप्त करने के लिए निरन्तर भागीरथी प्रयास करता रहता है, और रात के उन क्षणों में विधि के ज्ञान तथा समाज की परम्पराओं की खोज करता है, जब सारा संसार सो रहा होता है। वह व्यक्ति ऐसे समाज में रहता है, जहाँ पर उसके विभिन्न लोग परिचित हैं, परन्तु मित्र नहीं, और परिचितों से उसका कोई परिचय नहीं। न्यायाधीश 24 घन्टे इस प्रयत्न में लगे रहते हैं कि वे मुकदमों में सही निर्णय दें। इसके लिए वे निरन्तर परिश्रम, लगन और विधि-पेशे से अपना कानूनी ज्ञान बढ़ाते रहते हैं।

इस व्यवसाय में जब वह शिखर पर पहुँचता है तब उसे केवल विधि की व्याख्या ही नहीं करनी पड़ती वरन् वह न मित्र से डरता है और न शत्रु से, उसे, केवल एक ही डर बना रहता है कि कहीं वह मानवीय स्वभाव की स्वाभाविक कमी का शिकार न हो जाये जिससे न्याय की बजाय अन्याय न हो जाये। यही तथ्य वकील के लिए भी सच है। परन्तु तब राष्ट्रों का पतन हो जाता है। राष्ट्रों का पतन इसलिए नहीं होता कि लोग राष्ट्र के बारे में चिन्तित नहीं होते वरन् इसलिए होता उनके साथ वैसा बर्ताव नहीं होता जैसा उनके साथ होना चाहिए।” इसलिए न्यायाधीशों तथा वकीलों को एक साथ निर्भीक और निष्पक्ष होना चाहिए।

वर्तमान भारत में पेशेवर नैतिकता (व्यावसायिक नैतिकता) का महत्व (Importance of Professional Ethics in Modern India) –

इसमें सन्देह नहीं है कि वर्तमान कालीन भारत में पेशेवर नैतिकता / व्यावसायिक नैतिकता की आवश्यकता दिन पर दिन बढ़ती चली जा रही हैं। भारतीय संविधान ने सामान्य व्यक्तियों को मूल अधिकार प्रदान किये हैं। ये मूल अधिकार व्यक्तियों को राज्य के विरूद्ध प्राप्त हैं। व्यक्ति की तुलना में राज्य अधिक शक्तिशाली संगठन है। अतः इन मूल अधिकारों का वास्तविक संरक्षण तभी सम्भव है जब राष्ट्र के वकील सजग और सचेत हों।

भारत का उच्चतम न्यायालय मूल अधिकारों का संरक्षक है परन्तु उच्चतम न्यायालय तभी संरक्षण प्रदान कर सकता है जबकि विवाद न्यायालय के सामने पेश हों। न्यायालय के सामने मुकदमा पेश करना वकीलों का कार्य है। राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम में जिस प्रकार वकीलों ने अग्रिम पंक्ति में रहकर राष्ट्र को बाह्य राजनैतिक शक्ति से मुक्ति दिलाई उसी प्रकार वर्तमान वकीलों का यह कर्तव्य है कि वे मूल अधिकारों के संरक्षण में आगे आयें।

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भारतीय संविधान के द्वारा केन्द्र तथा राज्य में संसदीय स्वरूप की सरकारों का (Parliamentary form of Govt.) गठन किया गया है। राष्ट्र का संविधान संघात्मक (Federal) है। संघात्मक संविधान में विभिन्न राज्यों के बीच भी विवाद उत्पन्न होते हैं। इन विवादों के निर्धारण के लिए केवल उन वकीलों की आवश्यकता नहीं है जो मात्र लिखित व्यवस्थाओं की व्याख्या करें। भारत में विभिन्न व्यक्तियों को सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक न्याय तब तक नहीं मिलता जब तक प्रजातन्त्र के स्थायित्व की कल्पना नहीं की जा सकती।

निहित स्वार्थ (Vested Interest) सामाजिक हितों की खुले आम उपेक्षा कर रहे हैं तथा सुविधा की वेदी पर सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय का बलिदान हो सकता है अगर वकील दूरदर्शी और जागरूक न होंगे। इस सन्दर्भ में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि एक वकील व्यवसाय करता है व्यवस्था नहीं, अतः वकील को वह नैतिकता अपनानी चाहिए जो व्यवसाय की है।

यह कहना अनुचित न होगा कि आधुनिक सन्दर्भ में समाज के प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति इस व्यवसाय में आ रहे हैं। वे व्यक्ति भी इस व्यवसाय में आ रहे हैं जो आर्थिक रूप से सुदृढ़ नहीं हैं। फलस्वरूप व्यवसाय व्यापार बनता जा रहा है और वे उच्च आदर्श समाप्त होते जा रहें हैं जिनकी लहरों पर न्याय का पोत चला करता था। विधि का व्यवसाय समाज में भी चलेगा इसलिए सामाजिक व्यक्तियों का उस पर प्रभाव पड़ना अनिवार्य है।

फिर भी यह अपेक्षित है कि आधुनिक भारत के वकील को अतीत के वकील की तुलना में. कई गुना अधिक सामर्थ्य लेकर इस व्यवसाय में आना चाहिए, ताकि वह इस पेशे में सफलता प्राप्त कर सकें। एक वकील को अपनी ऐसी व्यावसायिक नैतिकता बनानी चाहिये जिससे समाज में उसका सम्मान हो तथा वह अपने पेशे के प्रति न्याय कर सके। यह तभी सम्भव हो सकता है जब एक वकील ईमानदारी पूर्वक सत्य निष्ठा और मेहनत से अपना कार्य करें अतः वर्तमान भारत में आज पहले से अधिक व्यवसायिक नैतिकता की आवश्यकता है।

वर्तमान समय में, व्यावसायिक नैतिकता केवल एक औपचारिक संहिता नहीं, बल्कि न्याय और विधि व्यवसाय की रीढ़ है। यह वकीलों को सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता और कर्तव्यनिष्ठा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। यदि वकील अपनी व्यावसायिक नैतिकता का ईमानदारी से पालन करें, तो समाज में न्याय और विश्वास की भावना मजबूत होगी। इसलिए, यह आवश्यक है कि प्रत्येक विधि व्यवसायी व्यावसायिक नैतिकता को न केवल एक नियम के रूप में, बल्कि अपने पेशे के मूल सिद्धांत के रूप में अपनाए।

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