वकील कौन है – परिभाषा, अर्थ, और भूमिका

“वकील कौन होता है?” — यह सवाल भारत के कानूनी ढांचे में दिलचस्पी रखने वाले हर व्यक्ति के मन में कभी न कभी ज़रूर आता है। क्या सिर्फ़ कानून की डिग्री काफ़ी है वकील बनने के लिए? क्या कोई भी कोर्ट में जाकर खुद को वकील कह सकता है? इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि वकील (Advocate) किसे कहते हैं, और कौन-कौन से व्यक्ति राज्य नामावली (State Roll) में अधिवक्ता के रूप में प्रविष्ट होने के पात्र होते हैं।

क्या आप जानते हैं कि “वकील” कहलाने के लिए केवल कानून की डिग्री होना ही पर्याप्त नहीं है? भारत में विधि व्यवसाय को एक सम्मानित और नियंत्रित पेशा माना गया है, और इसमें प्रवेश के लिए कुछ विशेष योग्यता और प्रक्रियाएँ निर्धारित की गई हैं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे
अगर आप विधि के छात्र हैं, वकालत में करियर बनाना चाहते हैं या सिर्फ़ अपने कानूनी ज्ञान को समृद्ध करना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए एक संपूर्ण मार्गदर्शिका की तरह काम करेगा।

वकील किसे कहते हैं? वे कौन से व्यक्ति हैं जिन्हें किसी राज्य नामावली में वकीलों के रूप में प्रविष्ट किया जा सकता है (What do you mean by Advocate? What are the persons who are entitled to be enrolled as an Advocate on State Roll?)

वकील कौन होता है वकील का अर्थ (Meaning of Advocate)

वकील से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो अन्य व्यक्ति की ओर से वक्तव्य देता है या बोलता है या पैरवी करता है। न्यायालयों में वकील अपने-अपने पक्षों की ओर से पैरवी करते हैं और उन्हें विजयी बनाने के लिए परिश्रम करते हैं तथा ऐसा करने के लिए अपना पारिश्रमिक लेते हैं।

वकील अधिनियम, 1961 की धारा 2 (1) (क) के अनुसार, वकील से, तात्पर्य उच्च न्यायालय के किसी वकील या अधिवक्ता, प्लीडर, मुख्तार या राजस्व अभिकर्ता से है।

वकील के रूप में विधि पेशे में प्रवेश करने से पूर्व प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह विधि की परीक्षा देश के किसी भी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण कर चुका हो। विधि का अध्ययन निर्धारित प्रतिशत अंकों से पूर्ण करने के बाद ही सम्बन्धित राज्य के बार कौंसिल द्वारा ऐसे व्यक्ति के वकील के पंजीकरण की औपचारिकता पूरी की जाती है।

वकील अधिनियम की धारा 30 में यह प्रावधान किया गया है कि इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए ऐसा व्यक्ति जिसका नाम वकील नामावली में प्रविष्ट है

1. उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय और अन्य अधीनस्थ न्यायालयों में,

2. किसी न्यायाधिकरण या साक्ष्य लेने के लिए विधिक रूप से प्राधिकृत व्यक्ति के समक्ष, तथा

3. ऐसे किसी व्यक्ति या प्राधिकारी के समक्ष

जहाँ कोई वकील ‘उस समय प्रचलित किसी विधि के अधीन विधि पेशा करने के लिए अधिकृत हो, विधि व्यवसाय करने का हकदार है। अतः यह स्पष्ट है कि किसी भी न्यायालय में विधि पेशा करने के लिए किसी व्यक्ति का केवल विधि स्नातक होना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उसका वकील नामावली में नाम प्रविष्ट होना भी आवश्यक है।

अधिवक्ता अधिनियम की धारा 33 के अनुसार, ऐसा कोई भी व्यक्ति किसी न्यायालय में वकील के रूप में विधि-व्यवसाय करने का हकदार नहीं होगा जिसका नाम अधिनियम के अन्तर्गत वकील नामावली में प्रविष्ट (Enter) न किया गया हो। धारा 45 के अन्तर्गत यदि कोई व्यक्ति, जो विधि व्यवसाय करने का हकदार नहीं है, किसी न्यायालय या प्राधिकारी के समक्ष विधि व्यवसाय करता है, तो उसका यह कार्य अवैधानिक माना जायेगा और उसे 6 माह तक की अवधि के कारावास से दण्डित किया जा सकेगा।

राजेन्द्र सिंह बनाम डॉ० सुरेन्द्र सिंह 1992 Cr. L.J. 3749 MP में यह कहा गया है कि विधि व्यवसाय एक आदर्श व्यवसाय है। इस व्यवसाय के लिए विशिष्ट बुद्धिमत्ता और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। वकील को आचार संहिता के अधीन गरिमा, शालीनता और अनुशासन के साथ अपने कर्त्तव्य का पालन करना होता है। अतः कोई भी व्यक्ति तब तक विधि व्यवसाय नहीं कर सकता है जब तक कि उसके पास निर्धारित शैक्षिक योग्यता नः हो और वकील नामावली में उसका नाम प्रविष्ट न हो।

नीलगिरी बारं एसोसिएशन बनाम टी० के० महालिंगन A.I.R. 1998 Cr.

LR 247 SC में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वकालत का पेशा एक आदर्श और पवित्र व्यवसाय है। जनसाधारण वकील को आदर की दृष्टि से देखता है। ऐसी स्थिति में यदि कोई व्यक्ति निर्धारित योग्यता और पंजीकरण के बिना इस व्यवसाय की प्रतिष्ठा को आघात पहुँचाने वाला कार्य करता है तो ऐसा व्यक्ति किसी सहानुभूति का पात्र नहीं होगा और उसे कठोर दण्ड दिया जाना ही उचित होगा।

परमानन्द शर्मा बनाम राजस्थान बार कौंसिल A.I.R. 1999 Raj. में राजस्थान उच्च न्यायालय ने निश्चित किया है कि सरकारी विभाग में न्यायिक कार्य देख रहा व्यक्ति, जो विधि अधिकारी के रूप में पदासीन नहीं है, लेकिन वह उस विभाग में विधि अधिकारी के पद के कर्त्तव्यों का पालन करके विभाग की ओर से न्यायालय में कार्य कर रहा है, तो वह इस शर्त के साथ वकील के रूप में पंजीकृत हो सकेगा कि वह उसी विभाग का वकील बना रहेगा।

इस प्रकार विधि व्यवसाय में आने के लिए सम्बन्धित व्यक्ति के लिए विधि स्नातक होने के साथ-साथ वकील नामावली में उसका नाम वकील के रूप में दर्ज होना आवश्यक है। अन्य कोई भी व्यक्ति विधि व्यवसाय करने का हकदार नहीं हैं और ऐसे व्यक्ति को वकील अधिनियम के अन्तर्गत दण्डित किया जा सकता है।

व्यक्ति जो वकील के रूप में किसी राज्य की नामावली में दर्ज होने के हकदार हैं (Persons Entitled to be Enrolled as an Advocate in the Roll of any State)

वकील अधिनियम, 1961 की धारा 24 के अनुसार (1) इस अधिनियम और इसके अधीन बनाये गये नियमो के उपबन्धों के अधीन रहते हुए कोई व्यक्ति किसी राज्य नामावली में वकील के रूप में दर्ज किये जाने के लिए हकदार तभी होगा, जब वह निम्नलिखित शर्तें पूरी करें, अर्थात्-

(क) वह भारत का नागरिक हो।

परन्तु इस अधिनियम के अन्य उपबन्धों के अधीन रहते हुए किसी अन्य देश या राष्ट्र का व्यक्ति किसी राज्य नामावली में वकील के रूप में उस दशा में दर्ज किया जा सकेगा, जब उचित रूप से हकदार भारत के नागरिक उस अन्य देश में विधि व्यवसाय करने के लिए अनुज्ञात हो।

ख) उसने इक्कीस वर्ष की आयु पूरी कर ली हो।

(ग) उसने

(i) भारत के किसी राज्य क्षेत्र के किसी विश्वविद्यालय से 12.3.1967 से पहले विधि की उपाधि प्राप्त कर ली है, या-

(ii) किसी ऐसे क्षेत्र के जो भारत शासन अधिनियम, 1935 द्वारा परिनिश्चित भारत के मीटर 15.8.1947 के पूर्व शामिल था। किसी विश्वविद्यालय से उस तारीख के पूर्व विधि की उपाधि प्राप्त कर ली है। या

(iii) उपखण्ड (iii क) में जैसा उपबन्धित है उसके सिवाय विधि विषय में

तीन वर्ष के पाठ्यक्रम को पूरा करने के पश्चात भारत के किसी ऐसे विश्वविद्यालय से जिसे भारतीय विधिज्ञ परिषद (Bar Council of India) द्वारा इस अधिनियम के उद्देष्यों के लिए मान्यता प्राप्त है, 12 मार्च, 1967 के बाद विधि की उपाधि प्राप्त कर ली है, या

(iii क) विधि विषय में ऐसा पाठयक्रम पूरा करने के पश्चात् जिसकी अवधि शिक्षण वर्ष 1967-68 या किसी पूर्ववर्ती शिक्षण वर्ष से आरम्भ होकर दो शिक्षण वर्षों से कम की न हो, भारत के किसी विश्वविद्यालय से जिसे भारतीय विधिज्ञ परिषद द्वारा इन अधिनियमों के उद्देष्यों के लिए मान्यता प्राप्त है, विधि की उपाधि प्राप्त कर ली है, या

(iv) किसी अन्य दशा में भारत के राज्य क्षेत्र से बाहर के किसी विश्वविद्यालय से विधि की उपाधि प्राप्त की है। यदि उस उपाधि को, इस अधिनियम के उद्देष्य के लिए भारतीय विधिज्ञ परिषद द्वारा मान्यता प्राप्त है, या वह बैरिस्टर, है और उसे 31.12.1976 को या उसके पूर्व विधि व्यवसायी वर्ग में लिया है

(अथवा वह बम्बई या कलकत्ता उच्च न्यायालय के अटार्नी के रूप में नामांकन (Registeration) के लिए बम्बई या कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित आबद्ध शिक्षार्थी की परीक्षा या किसी अन्य परीक्षा में उत्तीर्ण हो चुका है) अथवा उसने विधि में ऐसी अन्य विदेशी योग्यता प्राप्त कर ली है, जिसे इस अधिनियम के अधीन वकील के रूप में प्रवेश पाने के उद्देश्य के लिए भारतीय विधिज्ञ परिषद् (Indian Bar Council) द्वारा मान्यता प्राप्त है।

(ङ) वह ऐसी अन्य शर्तें पूरी करता है,

जो इस अध्याय के अधीन राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा बनाये गये नियमों में निर्धारित (Specified) की जायें।

(च) उसने नामांकन के लिए

भारतीय स्टाम्प अधिनियम के अधीन प्रयार्य स्टाम्प शुल्क यदि कोई हो, और राज्य विधिज्ञ परिषद को सन्देश छः सौ रूपये तथा भारतीय विधिज्ञ परिषद के एक सौ पचास रूपये बैंक ड्राफ्ट द्वारा उस परिषद के पक्ष में देय की नामांकन फीस (Registeration Fees) दे दी है।

परन्तु जहाँ ऐसा व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है, और ऐसे प्राधिकारी से जो निर्धारित किया जावे, उस आशय का प्रमाण-पत्र पेश करता है, वहाँ उसके द्वारा राज्य विधिज्ञ परिषद को सन्देश नामांकन फीस एक सौ पच्चीस रूपये होगी।

स्पष्टीकरण (Explanation)- इस धारा के उद्देष्यों के लिए किसी व्यक्ति को भारत के किसी विश्वविद्यालय से विधि की उपाधि प्राप्त उस तारीख से समझा जायेगा, जिस तारीख को उस उपाधि की परीक्षा के परिणाम, विश्वविद्यालय द्वारा अपनी सूचना पट पर प्रकाशित किये जाते हैं या अन्यथा यह घोषित किया जाता है कि उसने परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है।

(2) उपधारा (1) ने किसी बात के होते हुए भी कोई वकील या प्लीडर जो विधि स्नातक है, राज्य नामावली में वकील के रूप में दर्ज किया जा सकता है, बशर्ते कि वह-

(ख) इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार ऐसे नामांकन के लिये आवेदन नियत दिन से दो वर्ष के भीतर, न कि उसके पश्चात् करता है; और

(ख) उपधारा (1) के खण्ड, (क), (ख), (ङ) और (च) में वर्णित शर्ते

पूरी करता है।

(3) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी कोई व्यक्ति जो-

(क) कम से कम तीन वर्ष तक वकील या प्लीडर या मुख्तार रहा हो या किसी विधि के अधीन किसी भी समय किसी उच्च न्यायालय के (जिसके अन्तर्गत भूतपूर्व, भाग ‘ख’ राज्य का उच्च न्यायालय भी है) या किसी संघ राज्य क्षेत्र में न्यायिक आयुक्त के न्यायालय में वकील के रूप में नामांकित किये जाने का हकदार था, या

(क क) किसी विधि के उपबन्धों के आधार पर (चाहे अभिवचन द्वारा या कार्य

द्वारा या दोनों के द्वारा) विधि पेशा करने के लिए वकील से भिन्न रूप में 1.12.1961 के पूर्व हकदार था; या जो इस प्रकार हकदार होता, यदि वह उस तारीख को लोक सेवा में न होता, या

(ग) भारत सरकार अधिनियम, 1935 द्वारा परिनिश्चित बर्मा में शामिल किसी क्षेत्र के उच्च न्यायालय का 1.4.1937 के पूर्व वकील था; या

(घ) भारतीय विधिज्ञ परिषद द्वारा इस वास्ते बनाये गये किसी नियम के अधीन वकील के रूप में नामांकित किये जाने के लिए हकदार है।

किसी राज्य नामावली में वकील के रूप में दर्ज किया जा सकेगा, बशर्ते कि वह-

(i) इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार ऐसे नामांकन के लिए आवेदन करता है और (ii) उपधारा (ⅰ) के खण्ड (क), (ख), (ङ) और (च) में वर्णित शर्ते पूरी करता है।

बार काउंसिल ऑफ इण्डिया बनाम अपर्णा ‘वस्तु मलिक 1994 2 SCC 102 में चूँकि अभ्यर्थी कॉलेज में नियमित छात्र के रूप में अध्ययन नहीं कर रहा था इसलिये यह धारण किया गया कि वह वकील के रूप में पंजीकृत होने के लिए अपेक्षित शर्तों का पालन नहीं कर रहा था।

बलदेव राज शर्मा बनाम बार काउन्सिल ऑफ इण्डिया A.I.R. 1989 SC 1541 में एक व्यक्ति जिसने विधि की डिग्री दो वर्ष तक व्यक्तिगत छात्र के रूप मे प्राप्त कर तथा तृतीय वर्ष की डिग्री नियमित छात्र के रूप में प्राप्त की को पजीकरण के लिए हकदार नहीं माना गया।

एल० एम० माहुरकर बनाम बार काउंसिल A.I.R. 1996 SC 1602 में यह निर्णय दिया गया कि बिक्री कर की वकालत विधि की वकालत नहीं मानी जा सकती। ऐसा व्यक्ति वकील के रूप में पंजीकृत किये जाने के लिए हकदार नहीं है।

इण्डियन कौंसिल बनाम बार काउन्सिल A.I.R. 1989 SC 154 में यह

निर्णय दिया गया कि विधि व्यवसाय में प्रवेश लेने वाले ऐसे व्यक्तियों जिन्होंने इस वृत्ति में प्रवेश हेतु प्रार्थना-पत्र दिये जाने की तिथि को 45 वर्ष की आयु पूर्ण कर ली है, पर रोक लगाने वाला नियम अनुचित और बार काउन्सिल के अधिकारातीत है। राज्य और केन्द्र स्तर पर विधिज्ञ परिषदों का गठन न केवल सदस्यों के हितों. अधिकारों और विशेषाधिकारों को सुरक्षित करने के लिए किया गया है,

बल्कि वादकारियों के हितों की रक्षा के लिये किया गया है, ताकि उदार प्रथा को कायम रखा जा सके तथा इस वृत्ति की शुद्धता और गौरव को कायम रखा जा सके। वे नियम जिसके द्वारा ऐसे व्यक्ति को वकील के रूप में पंजीकृत किये जाने से वर्जित किया गया है, जिसकी आयु 45 वर्ष की पूर्ण हो चुकी है, वकील अधिनियम की धारा 59 (1) (क ज) के द्वारा अधिकारातीत है, क्योंकि यह भेद-भावपूर्ण, मनमाना और अयुक्तियुक्त है। ऐसा नियम सामान्य व्यक्ति के हित में नहीं है। इसको समाप्त कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।

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इस लेख से यह स्पष्ट होता है कि वकील बनना सिर्फ़ एक डिग्री लेने का मामला नहीं है, बल्कि यह एक क़ानूनी और नैतिक प्रक्रिया है जिसमें योग्यता, पंजीकरण, और जिम्मेदारियों की स्पष्ट व्यवस्था है। Advocate Act, 1961 के प्रावधानों के अनुसार, केवल वही व्यक्ति वकालत कर सकता है, जिसका नाम राज्य की वकील नामावली में विधिवत दर्ज हो।

कानूनी पेशा ना सिर्फ़ एक रोजगार है, बल्कि यह जनहित, न्याय और संविधान की रक्षा से जुड़ा एक सम्मानजनक मिशन भी है। इसलिए, यदि आप इस क्षेत्र में प्रवेश की योजना बना रहे हैं, तो आवश्यक शैक्षणिक और वैधानिक योग्यता पूरी कर, इस गरिमामयी पेशे का हिस्सा बनें। आशा करता हु की आपको इस लेख में माध्यम से वकील किसे कहते है इसे समझने में मदद मिली होगी अगर आपका कोई सुझाव या प्रश्न है तो आप हमे कमेंट कर सकते है आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए जरुरी है आपको ये लेख कैसे लगा हमे कमेंट में बताये।

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