विधि व्यवसाय को समाज में एक सम्मानित और उत्तरदायित्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, जहाँ वकीलों की भूमिका न केवल कानूनी सलाह देने तक सीमित होती है, बल्कि न्याय प्रणाली की नींव को मजबूती प्रदान करने तक फैली होती है। ऐसे में “व्यावसायिक नीति” (Professional Ethics) का पालन वकीलों के लिए एक नैतिक अनिवार्यता बन जाती है।
आज के समय में जब विधि व्यवसाय भी व्यवसायिक दृष्टिकोण से देखा जाने लगा है, तब यह प्रश्न और भी प्रासंगिक हो जाता है कि क्या विधिक पेशे में नैतिक आचरण को सुनिश्चित करने हेतु कोई संहिताबद्ध अधिनियम (Codified Act) होना चाहिए? साथ ही, हमें यह भी जानना आवश्यक है कि वर्तमान में कौन-कौन से अधिनियम विधिक व्यावसायिक नीति से संबंधित हैं। इस लेख में हम इन्हीं पहलुओं की विस्तार से चर्चा करेंगे।

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(अ) विधि व्यवसाय में व्यावसायिक नीति की क्या आवश्यकता है? क्या व्यावसायिक नीति के सम्बन्ध में किसी संहिताबद्ध अधिनियम की आवश्यकता है? (What is the need of professional ethics in Legal profession. Is any Codified Act needed regarding professional ethics?)
(अ) विधि व्यावसायिक नीति की संहिता की आवश्यकता (Need of the Codification of Professional Ethics in Legal Profession) आधुनिक युग में, जबकि ‘आर्थिक लाभ’ को विधि व्यवसाय में काफी महत्व दिया जाने लगा है, विधि पेशे के क्षेत्र में काफी गिरावट आई है। वकील वर्ग अपने कर्त्तव्यों से विमुख होने लगा है। न्यायालय की अवमानना के मामलों में भी वृद्धि हुई है।
ऐसी स्थिति में न्याय प्रशासन को, स्वच्छ, शुद्ध और प्रदूषण मुक्त रखने के लिए यह आवश्यक है कि विधि व्यावसायिक नीति की संहिता तैयार की जाए। विधि व्यवसाय में व्यावसायिक नीति की संहिता की आवश्यकता के प्रश्न का उत्तर जानने के लिए यह जानना बहुत आवश्यक है कि विधि नीति की क्या आवश्यकता है तथा विधि व्यवसायी के व्यवहार को नियमित करने के लिए क्या किसी विधि व्यावसायिक नीति को संहिताबद्ध (Codified) नहीं किया जा सकता है?
अमेरिका की बार ऐसासियेशन ने प्रथम प्रश्न के उत्तर के सम्बन्ध में अर्थात् व्यावसायिक नीति की संहिता की आवश्यकता के सम्बन्ध में निम्नलिखित तर्क पेश किये थे
(i) जिस प्रकार पृथ्वी पर न्याय मनुष्यों के बीच हित की रक्षा का साधन है, और वकील जैसे न्याय के मन्दिर के उच्च महन्त हैं, न्याय की विशिष्टता वकीलों की नैतिक विशिष्टता पर निर्भर करती है। उनकी इस एकता और शुद्धता पर न्याय-प्रशासन की शुद्धता पर निर्भर करती है।
(ii) प्राचीन समाज के मिश्रित लक्षणों के विकास के साथ, विधि का भी मिश्रित विकास होता है। विधि के मिश्रित विकास के साथ एक वकील के लिए व्यवसाय के साधन और संभावनाएँ उसके उचित व्यवहार के साथ बढ़ती हैं। ऐसी परिस्थितियों में उसके पथ दर्शक हेतु सदैव नीति के नियम होने आवश्यक हैं जो इस व्यवसाय के व्यवसायियों का ध्यान आकर्षित करते रहें हैं तथा उन्हें गलत रास्ते से रोकते रहें हैं यदि कोई वकील, अपने नैतिक स्तर में पतन लाता है तो वह पूर्ण न्यायिक और विधि की संस्थाओं का पतन कर सकता है।
(iii) यह नीति संहिता इस पेशे में प्रवेश करने वाले नये व्यवसायियों के लिए विशेषतः दिशा निर्देशन दे सकता है। यह उनका ध्यान उनके उस मानक व्यवहार के निर्माण में आकर्षित कर सकेगा जो उनके द्वारा इस व्यवसाय में वांछित है। इस प्रकार उनकी व्यवसायिक आदतों के निर्माण में सहयोग करेगा।
उपर्युक्त तर्क जिस प्रकार अमेरिका की बार एसोसिएशन ने दिये हैं वे आज इस पेशे में सर्वमान्य और आवश्यक प्रतीत होते हैं।
दूसरे प्रश्न के उत्तर में यह तर्क उठता है कि एक वकील के लिए नीति संहिता इतनी ही आवश्यक है तो उन्हें विधायन द्वारा संहिताबद्ध (Codified) क्यों नहीं किया जाता जिससे कि वकीलों के व्यवहार को सामन रूप से निश्चित किया जा सके। इस सम्बन्ध में एक कारण बड़ा उचित दिखाई देता है कि यदि इस प्रकार की किसी संहिता को विधायन द्वारा स्वीकृत किया जाता है तो वह इस विस्तृत विधि के महान् व्यवसाय को नियमों के संकुचित घेरे में बाँध देगा जिससे सम्भावना यही अधिक है कि वह वकीलों के स्तर को गिरा देगा।
यह भी सम्भावना है कि वकीलगण इस प्रकार के संहिताबद्ध विनियमन में से निम्नतम व्यवहार करें जिससे इस प्रकार का निम्नतर व्यवहार दर्शित होगा जो संहिताबद्ध होने के कारण अवैधानिक भी नहीं होगा तथा नियमित होने के कारण उसे विधि-विरूद्ध भी घोषित नहीं किया जा सकता। इसलिये इन नियमों का नैतिक पालन ही उचित है। साथ ही इन नियमों को विस्तृत और सरल होना भी, आवश्यक है न कि कठोर तथा संकुचित।
अतः एक वकील की विधि में व्यापक भूमिका होती है। उसका व्यवहार कई पक्षों जैसे पक्षकार न्यायालय, जनमानस आदि के साथ होता है अतऔर उसके इस व्यवहार को किसी संहिता में बाँधना भी काफी विषम कार्य होगा। अतः नीति के नियमों को संहिताबद्ध करना बढ़ा जटिल और कठिन कार्य होगा जो व्यावहारिक दृष्टिकोण से उचित नहीं है।
(ब) वे कौन-कौन से विभिन्न अधिनियम हैं जो व्यावसायिक नीति से सम्बन्धित हैं? (What are the various enactments which relate to the professional ethics?)
(ब) व्यावसायिक नीति से सम्बन्धित विभिन्न अधिनियम (Various Enactments Relating to Professional Ethics) भारत में हिन्दू काल में तथा मुसलमान शासकों के काल में पण्डित तथा मौलवी न्याय प्रशासन का कार्य करते थे। इनकी अदालतों में वकील की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। इस प्रकार हिन्दू विधि तथा मुस्लिम विधि के अनुसार वकालत के किसी पेशे को स्वीकार नहीं किया गया था।
परन्तु मद्रास में सर्वप्रथम जब रेग्युलेटिंग एक्ट (Regulating Act) के अन्तर्गत कलकत्ता, बम्बई तथा मद्रास में सुप्रीम कोर्ट स्थापित हुए, उसमें वकालत के पेशे को स्वतन्त्र पेशे के रूप में स्वीकार किया गया। इस अधिनियम में यह व्यवस्था थी कि जो व्यक्ति एक वकील के रूप में कार्य करेंगे, उन्हें न्यायालय में पंजीकृत कराना होगा। एक्ट ऑफ सेटिलमैन्ट, 1781 के बाद वकालत के पेशे का श्रीगणेश अदालतों में हुआ। अभी तक भारत में विधि में इग्लैण्ड के ही वकील थे, अतः वे इंग्लैण्ड की विधि के व्यावसायिक नीति का पालन करते थे। धीरे-धीरे इस व्यवसाय में विकास होता गया।
आधुनिक युग में विधिक पेशे में कार्य करने वाले वकीलों के आचरण और व्यवहार को संचालित करने वाले बहुत से अधिनियम हैं। मुख्यतया वे अधिनियम जिनके द्वारा विधिक व्यवसाय में संलग्न व्यक्तियों का आचरण संचालित होता है, निम्नलिखित हैं-
- लीगल प्रेक्टीशनर्स एक्ट
- बम्बई वकील अधिनियम,
- भारतीय बार ‘कौंसिल अधिनियम,
- वकीलों का अधिनियम, इत्यादि ।
उपर्युक्त विभिन्न प्रकार के अधिनियम कानूनी पेशे के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित हैं। उपर्युक्त अधिनियम के अतिरिक्त परम्परागत व्यावसायिक मूल्य भी वकीलों के आचरण को संचालित करते हैं, परन्तु अभी तक भारत में कोई अकेला ऐसा अधिनियम नहीं है जो वकीलों तथा विधिक व्यावसायिक नीति के नियमों का व्यापक सन्दर्भों में वर्णन करता हो। परन्तु अधिनियमों द्वारा व्यवस्थित रूप से वकीलों के आचरण को संचालित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि व्यावसायिक नीति के साथ कई प्रकार के नैतिक प्रश्न भी जुड़े हुए होते हैं।
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वर्तमान युग में भारत के विधिक व्यवसाय में गुणात्मक दृष्टि से परिवर्तन हो रहा है। यह परिवर्तन एक तरफ व्यवसाय के आकार और प्रकार में हो रहा है तो दूसरी ओर विधि की उपयोगिता की धारणाओं और मूल्यों में परिवर्तित हो रहे हैं “न्याय” सामान्य व्यक्ति को प्रभावित करता है। वकील न्याय प्रशासन के स्तम्भहोते हैं, अतः उन पर विधि के अतिरिक्त नैतिक मूल्यों का भी प्रभाव होना चाहिए। प्रजातान्त्रिक व्यवसाय इस प्रकार के नैतिक चरित्र पर भी निर्भर करता है। आधुनिक समाज दिन-पर-दिन जटिल होता चला जा रहा है।
फलस्वरूप विधि में भी जटिलताओं का शामिल होना अनिवार्य है, अतः उन जटिलताओं का शोषण निहित स्वार्थों के लिए न हो सके, अतः पुन विधि के व्यावसायिक नीति से सम्बन्धित नियमों की आवश्यकता होती है। ऐसी अवस्था में वकील का औचित्यपूर्ण आवरण और भी अधिक महत्वपूर्ण होता है
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि विधि व्यवसाय में व्यावसायिक नीति केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक मूलभूत आवश्यकता है, जो न्याय व्यवस्था की पवित्रता और समाज के विश्वास को बनाए रखने में सहायक है। हालांकि संहिताबद्ध नियमों की अपनी सीमाएँ होती हैं, फिर भी नैतिक मूल्यों का अनुपालन हर विधिज्ञ का नैतिक कर्तव्य है। वर्तमान अधिनियम और परंपरागत मूल्य मिलकर वकीलों के आचरण का मार्गदर्शन करते हैं, किंतु बदलते समय और जटिल होती विधिक प्रक्रियाओं को देखते हुए, व्यावसायिक नीति के नियमों को अधिक व्यावहारिक, स्पष्ट और व्यापक रूप देने की आवश्यकता है। तभी हम एक निष्पक्ष, नैतिक और न्यायपूर्ण विधिक प्रणाली की स्थापना कर सकेंगे।