भारतीय संविधान के अंतर्गत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता | Freedom of speech and expression under the Indian Constitution

भारतीय संविधान के अन्तर्गत वाक एवम् अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझाइए। इस अधिकार पर युक्तियुक्त निबन्धन क्या है निर्णीत वादों का संदर्भ दीजिए? Freedom of speech and expression under the Indian Constitution

“अनुच्छेद 19(A) वाक् एवम् अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता” से आशय अभिव्यक्ति के किसी भी माध्यम जैसे- बोलकर, लिखकर, छापकर, चित्रकारी आदि द्वारा अपने विचारों को व्यक्त करना। इस प्रकार इसके अंतर्गत अभिव्यक्ति के सभी माध्यम शामिल है 

freedom of speech

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) में नागरिकों को “विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” प्रदान की गई है। यह स्वतंत्रता लोकतंत्र के स्तंभों में से एक है और नागरिकों को अपनी राय व्यक्त करने, विचारों का आदान-प्रदान करने और सरकार की आलोचना करने का अधिकार देता है।

इस अधिकार का दायरा:

यह अधिकार भाषण, लेखन, कला, प्रदर्शन, और अन्य माध्यमों से विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। इसमें राजनीतिक विचार, धार्मिक विश्वास, सामाजिक मुद्दों पर राय, और अन्य विषयों पर अभिव्यक्ति शामिल हैं।

उच्चतम न्यायालय ने वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्र (freedom of speech and expression)के अन्तर्गत निम्नलिखित को शामिल किया है- 

1. शांति का अधिकार ।

2. प्रेस की स्वतन्त्रता

3. व्यवसायिक विज्ञापन की स्वतंत्रता
4. फोन पिंग स्वहन्त्रता अधिकार
5. अपने व किसी अन्य के विचारों को प्रसारित करने का अधिकार।
6. सरकारी गतिविधियो की सूचना का अधिकार।

7. प्रेस की स्वतन्त्रता:

सामाचार पर विचारों को अभिव्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। राजनीतिक स्वतन्त्रता तथा प्रजातंत्र की सफलता के लिए प्रेस की स्वतन्त्रता जरूरी है।

जीवन के लोकतांत्रिक तरीकों को संरक्षित करने के लिए यह आवश्यक है कि लोगों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और बड़े पैमाने पर लोगों को अपने विचारो से अवगत कराने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए। प्रेस जनसंचार का एक शक्तिशाली माध्यम है।

विक्रय तथा विक्रय के करार  Sale and Agreement of Sale in law

Case- रमेश व्यापर बनाम मद्रास राज्य A⋅I⋅R 1950 S.C 12 में न्यायालय ने उस विधि अविधि मान्य घोषित कर दिया। जिसके द्वारा एक राज्य में एक पत्रिका के प्रसारण पर रोक लगा दी गई।

पिटीशनर “क्रास रोड” नामक पत्रिका भी का प्रकाशक व सम्पादक था। जो बम्बई से प्रकाशित होती थी। मद्रास राज्य ने एक आदेश जारी कर उक्त पत्रिका के राज्य में प्रसारण पर रोक लगा दी। न्यायालय ने उक्त अवरोध को अविधिमान्य घोषित कर दिया क्योंकि इससे पत्रिका के प्रसारण की स्वतन्त्रता पर अवरोध लगा था जो प्रेस की स्वतंत्रता का एक आवश्यक तत्व हैं।

Case बैनेट कौलमेन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया A.I.R 1973 AC 106 में 1972-73 की अखबारी कागज नीति और कागज नियंत्रण आदेश में 1962 की वैधता को चुनौती दी गई। इस आदेश में अखबारों के पृष्ठों की अधिकतम संख्या 10 सीमित की गई। सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया की भाषण की स्वतंत्रता पर अखबारों के व्यापारिक कार्यों को नियमित करने के उद्‌देश्य से प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता।

निष्कर्ष:

“विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” freedom of speech and expression भारतीय लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण अधिकार है। यह नागरिकों को अपनी राय व्यक्त करने, विचारों का आदान-प्रदान करने और सरकार की आलोचना करने का अधिकार देता है। हालांकि, यह अधिकार पूर्ण नहीं है और कुछ उचित प्रतिबंधों के अधीन है।

यह अधिकार क्यों महत्वपूर्ण है:

  • यह नागरिकों को अपनी राय व्यक्त करने और सरकार की आलोचना करने का अधिकार देता है।
  • यह विचारों के आदान-प्रदान और बहस को बढ़ावा देता है।
  • यह सामाजिक परिवर्तन और सुधार को प्रेरित करता है।

यह अधिकार कैसे खतरे में है:

  • सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध।
  • सामाजिक दबाव और धमकी।
  • नकली समाचार और गलत सूचना।

यह अधिकार कैसे संरक्षित किया जा सकता है:

  • नागरिकों को अपने अधिकारों के बारे में शिक्षित करना।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरे के खिलाफ आवाज उठाना।
  • स्वतंत्र मीडिया और नागरिक समाज को मजबूत करना।

यह लेख भारतीय संविधान में प्रदान किए गए “विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के अधिकार पर प्रकाश डालता है। इसमें इस अधिकार का दायरा, युक्तियुक्त निबंधन, और निर्णयित वादों का संदर्भ शामिल है।

यह अधिकार नागरिकों को अपनी राय व्यक्त करने, विचारों का आदान-प्रदान करने और सरकार की आलोचना करने का अधिकार देता है। यह लोकतंत्र के स्तंभों में से एक है और सामाजिक परिवर्तन और सुधार के लिए महत्वपूर्ण है।

हालांकि, यह अधिकार पूर्ण नहीं है और कुछ उचित प्रतिबंधों के अधीन है। इन प्रतिबंधों को राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता, और अन्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए लगाया गया है।

लेख में कुछ महत्वपूर्ण निर्णयित वादों का भी उल्लेख किया गया है, जिनमें “केशवानंद भारती”, “मिनर्वा मिल्स”, और “एस. रंगाराजन” मामले शामिल हैं। इन मामलों में, सुप्रीम कोर्ट ने “विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के अधिकार को मजबूत किया और इसकी रक्षा करने की आवश्यकता पर बल दिया।

लेख का अंत इस बात पर जोर देकर होता है कि यह अधिकार हम सभी के लिए महत्वपूर्ण है और हमें इसे बनाए रखने और इसकी रक्षा करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।

यह लेख उन लोगों के लिए उपयोगी है जो:

  • भारतीय संविधान में “विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” freedom of speech and expression के अधिकार के बारे में जानना चाहते हैं।
  • इस अधिकार के दायरे और युक्तियुक्त निबंधन को समझना चाहते हैं।
  • निर्णयित वादों के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं।
  • इस अधिकार के महत्व को समझना चाहते हैं और इसकी रक्षा करने के लिए क्या किया जा सकता है।

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