तत्व एवं सार के सिद्धात का परिचय
कानून जटिल दस्तावेज होते हैं जिनकी व्याख्या करना अक्सर मुश्किल होता है। केवल शब्दों के आधार पर कानून का अर्थ समझना हमेशा पर्याप्त नहीं होता है। तत्व एवं सार का सिद्धांत इसी समस्या का समाधान प्रदान करता है। यह सिद्धांत कानून की व्याख्या करते समय उद्देश्य और भावना पर ध्यान केंद्रित करने पर बल देता है, न कि केवल उसके शाब्दिक अर्थ पर। इस लेख में हम तत्व एवं सार के सिद्धात को जानेंगे
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तत्व एवं सार का सिद्धांत क्या है? (What is the theory of pith and substance?)
संविधान में राज्यों और केंद्र की विधि बनाने की शक्ति को तीन सूचियो (संघ सूची, राज्य सूची व समवर्ती सूची) में विभाजित किया गया है। परन्तु सूची में वर्णीत विषयों का विभाजन पूर्ण रूप से वैज्ञानिक ढंग से किया जाना सम्भव नहीं था। ऐसे में केंद्र व राज्य के मध्य विवाद उत्पन्न होता रहता है। कि कोई विषय एक सरकार के अधिकार क्षेत्र में हैं या दूसरी सरकार के अधिकार क्षेत्र में ऐसे में न्यायालय मामले के सार को देखता है
इसके अंतर्गत तीनो सूचियों की व्याख्या कानून के शीर्षक को देखकर नहीं बल्कि विषयवस्तु के आधार पर सार तत्व के सिध्दान्त के आधार पर की जाती है। सार तत्व के सिद्धान्त (theory of pith and substance)को संसद द्वारा बनाये गये कानूनों और राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाये गए कानूनो (अनुच्छेद 54) में प्रतिकूलता से संबंधित मामलो में भी लागू किया जाता है।
तत्व एवं सार का सिद्धात महत्त्व (यह सिद्धांत क्यों महत्वपूर्ण है ) principle importance of element and essence
तत्व एवं सार का सिद्धांत कानून की व्याख्या में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि कानूनों का उपयोग उनके उद्देश्य के अनुरूप किया जाए, न कि केवल उनके शाब्दिक अर्थ के अनुसार। तत्व एवं सार का सिद्धांत यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि कानून का उचित और न्यायसंगत तरीके से उपयोग किया जाए। यह न्यायाधीशों को कानून की भावना को समझने और उचित निर्णय लेने में मदद करता है.
सार तत्व के सिद्धान्त (theory of pith and substance) को पहली बार कनाडा के संविधान में स्वीकार किया गया था। और भारत में इसे भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत स्वतंत्रता पूर्व अवधि में अपनाया गया था। इससे संबंधित एक वाद गया है जो इसे समझने में मदद करता है
मुम्बई राज्य बनाम बालसार AIR 1951 मामले में बाम्बे मध्य निषेध अधिनियम जिसके द्वारा राज्य में मादक द्रव्यो को खरीदने तथा रखने को निषेध कर दिया गया था। कानून की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी गयी थी कि वह संघ सूची में वर्णित विषय मादक पदार्थो के आयात निर्यात पर अतिक्रमण करता है। क्योकि मादक द्रव्यों के क्रय विक्रय और उपयोग को रोकने से उसके आयात निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उच्चतम न्यायलय के अनुसार अधिनियम का मुख्य उद्देश्य राज्य सूची के विषय से संबधित था संघ सूची से नहीं।
उदाहरण:
- मान लीजिए कि किसी कानून में “किसी भी जानवर को मारने” पर प्रतिबंध लगा हुआ है। यदि कोई व्यक्ति किसी जानवर को जहर देकर मारता है, तो यह “किसी भी जानवर को मारने” के प्रतिबंध का उल्लंघन होगा, भले ही उसने जानवर को सीधे तौर पर नहीं मारा हो।
- मान लीजिए कि किसी कानून में “किसी भी प्रकार का भेदभाव करने” पर प्रतिबंध लगा हुआ है। यदि कोई व्यक्ति किसी विशेष समूह के लोगों को नौकरी पर रखने से मना करता है, तो यह “किसी भी प्रकार का भेदभाव करने” के प्रतिबंध का उल्लंघन होगा, भले ही उसने उन लोगों के खिलाफ कोई सीधा भेदभावपूर्ण कृत्य न किया हो।
इस सिद्धांत के कुछ महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं:
- कानूनों की व्याख्या करते समय लचीलापन: यह सिद्धांत न्यायाधीशों को कानूनों की व्याख्या करते समय लचीलापन प्रदान करता है, ताकि वे न्यायसंगत और उचित परिणाम सुनिश्चित कर सकें।
- कानूनी न्याय: यह सिद्धांत कानूनी न्याय को बढ़ावा देता है, यह सुनिश्चित करके कि कानूनों का उपयोग लोगों के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए किया जाए।
- कानूनी प्रणाली में निष्पक्षता: सार तत्व का सिद्धान्त (theory of pith and substance) कानूनी प्रणाली में निष्पक्षता को बढ़ावा देता है, यह सुनिश्चित करके कि कानूनों का समान रूप से और भेदभाव के बिना सभी पर लागू किया जाता है।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण पूछे जाने वाले प्रश्न।
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