चलत प्रत्याभूति का प्रतिसंहरण Revocation of continuing guarantee

चलत प्रत्याभूति का प्रतिसंहरण किस प्रकार किया जा सकता है

चलत प्रत्याभूति एक ऐसा करार है जिसके तहत प्रत्याभूतिदाता ऋणी द्वारा भविष्य में किए जाने वाले सभी लेनदेन के लिए गारंटी देता है। यह ऋण, ऋण, या किसी अन्य प्रकार के ऋण के लिए हो सकता है।

यह लेख विभिन्न तरीकों पर प्रकाश डालेगा जिनके माध्यम से चलत प्रत्याभूति का प्रतिसंहरण किया जा सकता है, साथ ही साथ इसमें शामिल कानूनी पहलुओं पर भी चर्चा करेगा।

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चलत प्रत्याभूति क्या हैं? (what is continuing guarantee):

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (Indian Contract Act, 1872) की धारा 143 के तहत चलत प्रत्याभूति को परिभाषित किया गया है। यह एक ऐसा वचन है जो ऋणी द्वारा ऋणदाता को दिया जाता है, जिसमें ऋणी के भविष्य के लेनदेन के लिए गारंटी दी जाती है। चलत प्रत्याभूति का प्रतिसंहरण धारा 148 एवं 149 में निहित है।

चिरगामी प्रत्याभूति (Continuing Guarantee) एक प्रकार का कानूनी समझौता है जिसमें एक व्यक्ति (प्रतिभू) दूसरे व्यक्ति (ऋणी) के ऋण या दायित्वों के लिए गारंटी देता है, यह गारंटी भविष्य में होने वाले लेनदेन पर भी लागू होती है। चलत प्रत्याभूति, जिसे “चिरगामी प्रत्याभूति” या “अनवरत प्रत्याभूति” भी कहा जाता है,

चलत प्रत्याभूति का प्रतिसंहरण (Revocation of continuing guarantee):-

(ⅰ) प्रतित्संहरण की सूचना द्वारा (धारा 130):-

1. चलत प्रत्याभूति का भावी संव्यवहारों के बारे में प्रतिसंहरण लेनदार को सूचना द्वारा किसी समय भी प्रतिभू कर सकेगा।

2. साधारणतया प्रत्याभूति दी जाने के बाद वापस नहीं ली जा सकती। परन्तु अनवरत प्रत्यभूति को ऋणदाता को सूचना देकर वापस लिया जा सकता है ऐसी सूचना के बाद होने वाले संव्यवहारों के लिए प्रतिभू दायी नहीं होगा परन्तु जो संव्यवहार ऐसी सूचना से पहले हो चुका’ होता है उनके लिए प्रतिभू का दायित्व बना रहता है।

(2) प्रतिभू की मृत्यु द्वारा (धारा-131):-

1. जब तक की संविदा में कोई स्पष्ट उपबंध न हो तो चलत प्रत्यावृति प्रतिभू की मृत्यु से समाप्त हो जाती है। मृत्यु के बाद होने ‘वाले सभी संव्यवहारों के लिए कोई दायित्व नहीं होता।

2. परन्तु मृत्यु से पूर्व जो संव्यवहार हो चुके है उनके लिए प्रतिभू के उत्तराधिकारियो का दायित्व बना रहता है।

(3) संविया की शर्ती में परिवर्तन द्वारा (धारा-133):-

जो भी परिवर्तन मूल ऋणी और लेनदार के बीच की संविदा की शर्तों में प्रतिभू की सहमति के बिना किया जाता है प्रतिभू उस परिवर्तन के बाद होने वाले संव्यवहारो के दायित्व से उन्मोचित हो जाता है।

कानूनी पहलू:

भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872:

यह अधिनियम चिरगामी प्रत्याभूतियों और उनके प्रतिसंहरण से संबंधित कानूनों को नियंत्रित करता है।

प्रत्याभूति का प्रकार:

प्रत्याभूति के प्रकार (जैसे कि सीमित या असीमित) प्रतिसंहरण की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।

विशिष्ट शर्तें:

प्रत्येक अनवरत प्रत्याभूति में विशिष्ट शर्तें होती हैं जो प्रतिसंहरण की प्रक्रिया को निर्धारित करती हैं।

कुछ अन्य महत्वपूर्ण पूछे जाने वाले प्रश्न।

प्रतिषेध रिट क्या है? What is prohibition writ?

प्रतिषेध रिट व उत्प्रेषण रिट में अंतर स्पष्ट कीजिए। Difference between prohibition writ and certiorari writ

प्रस्ताव की संसूचना कैसे होती है How is a proposal communicated?

निष्कर्ष:

अनवरत प्रत्याभूति का प्रतिसंहरण एक जटिल प्रक्रिया हो सकती है।

यह महत्वपूर्ण है कि आप किसी भी कार्रवाई करने से पहले प्रत्याभूति की शर्तों और भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के प्रावधानों को ध्यान से पढ़ें।

यह भी सलाह दी जाती है कि आप कानूनी सलाह लें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आप कानूनी रूप से प्रत्याभूति को रद्द करने की प्रक्रिया का पालन कर रहे हैं.

यह लेख चिरगामी प्रत्याभूति के प्रतिसंहरण के विभिन्न तरीकों और कानूनी पहलुओं पर प्रकाश डालता है।

मुख्य बिंदु:

  • चिरगामी प्रत्याभूति को विभिन्न तरीकों से रद्द किया जा सकता है, जिसमें प्रत्याभूति में निहित खंडों के माध्यम से, सहमति से, नोटिस देकर, या अदालती हस्तक्षेप के माध्यम से शामिल हैं।
  • भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 अनवरत प्रत्याभूतियों और उनके प्रतिसंहरण से संबंधित कानूनों को नियंत्रित करता है।
  • प्रत्याभूति का प्रकार, विशिष्ट शर्तें, और लागू कानून प्रतिसंहरण की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।
  • चिरगामी प्रत्याभूति का प्रतिसंहरण करने से पहले कानूनी सलाह लेना महत्वपूर्ण है।

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